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नेपाल के बच्चों पर भारतीय कार्टून- मोटू-पतलू का प्रभाव

केशबी कुमारी जोशी

कार्टून के कारण बच्चे अपनी सोचने की शक्ति में कमजोर और शिक्षा संबंधी प्रदर्शन में कमजोर होते जा रहे हैं।

सार 

यह लेख नेपालगंज नगर पालिका में बच्चों के बीच किए गए क्षेत्र-अध्ययन के आधार पर लिखा गया है। यह नगर पालिका लुंबिनी प्रांत का एक प्रमुख शहर है। इस लेख में बच्चों पर मोटू-पतलू कार्टून के प्रभावों का पता लगाने का प्रयास किया है। इससे पता चलता है कि मोटू-पतलू कार्टून नेपाल ds बच्चों का पसंदीदा कार्टून कार्यक्रम है, क्योंकि यह काल्पनिक, मजाकिया, हास्यास्पद होने के कारण बच्चों को आकर्षित करता हैं। इससे यह निष्कर्ष निकला है कि लोकप्रिय कार्टून धारावाहिक बच्चों के बीच हिंसा और आक्रामकता पैदा करता है। कल्टीवेशन के सैद्धांतिक ढांचे पर आधारित, यह अध्ययन 200 उत्तरदाताओं         (dqy la[;k = 200) के बीच सर्वेक्षण व इस कार्टून धारावाहिक के तीन एपिसोड की विषय-वस्तु के विश्लेषण और साथ में बाल अधिकार के विशेषज्ञों व बाल कल्याण क्षेत्र के विशेषज्ञों के साथ साक्षात्कार का परिणाम है। सर्वेक्षण के निष्कर्ष बताते हैं कि बच्चों का रुझान मोटू-पतलू कार्टून की ओर अधिक है। क्योंकि हिंसा और हास्य कार्टून एपिसोड में एक साथ प्रदर्शित किये जा रहे हैं। मोटू-पतलू में कार्टून कंटेंट बच्चों को आक्रामकता की ओर ले जा रहा है।

कीवर्ड : आक्रामकता, कार्टून-शो, मोटू-पतलू

  1. पृष्ठभूमि

वर्षों से, भारत के टेलीविजन चैनल नेपाली दर्शकों को मनोरंजन से लेकर समाचार और यहां तक कि धर्म से जुड़ी विभिन्न सामग्री प्रदान कर रहे हैं। नेपाल की बाल आबादी का बड़ा वर्ग किसी अन्य कार्यक्रम के बजाय भारतीय टीवी कार्टून को पसंद करता है। इस लेख में सर्वेक्षण, विषय-वस्तु विश्लेषण और साक्षात्कार के आधार पर हिंदी भाषा के टेलीविजन कार्टून धारावाहिक, विशेष रूप से मोटू-पतलू के नेपाल देश के दक्षिण भाग की बाल आबादी पर होने वाले प्रभाव को जानने का प्रयास किया गया है। यहां संबंधित मुद्दे, बच्चों के बीच कार्टून के नकारात्मक प्रभाव से जुड़े हैं। इसलिए, यह लेख कार्टून-धारावाहिक द्वारा उनके लक्ष्य यानी कि, स्कूल जाने वाले बच्चों के बीच धारणा को बनाने के संबंध में तीन प्रासंगिक सवालों से संबंधित है। पहला, बच्चे कितने अधिक समय तक कार्टून देखते हैं, जिससे वे प्रभावित हुए   हैं ? दूसरा, कार्टून में हिंसा और आक्रामकता ने बच्चों को किस हद तक प्रभावित किया ? तीसरा सवाल यह है कि बच्चे कार्टून में जो देखते हैं उस पर कितना अमल करते हैं? इसलिए, इस अध्ययन का उद्देश्य इन तीन सवालों के जवाब प्रस्तुत करना है।

बुशमैन (2013) हिंसक वीडियो गेम के शोधकर्ता के रूप में कहते हैं, एक सवाल है जो मुझसे लगातार पूछा जाता है: “मैंने वर्षों तक हिंसक वीडियो गेम खेला है। मैं हत्यारा क्यों नहीं  cuk ?” मेरा जवाब आमतौर पर बहुत ही सीधा होता है। आप एक अच्छे, सुदृढ़ घर से आते हैं। आपके मित्र हैं। आपको स्कूल में तंग नहीं किया गया। आपके पास एक स्वस्थ मस्तिष्क है। हिंसक व्यवहार बहुत जटिल होता है और जो कई कारकों के एक साथ प्रभावी होने के कारण होता है। हिंसक वीडियो गेम का एक्सपोजर हिंसा के लिए एकमात्र कारक नहीं है, या यहां तक कि सबसे महत्वपूर्ण कारक भी नहीं है, लेकिन यह कोई मामूली कारक भी नहीं है।

  1. पद्धति एवं सामग्री 

यह लेख इस परिघटना को कल्टीवेशन सिद्धांत के नजरिये से देखने का भी एक प्रयास है। कल्टीवेशन सिद्धांत के अनुसार, कम समय तक टीवी देखने वालों की तुलना अधिक समय तक टीवी देखने वाले दर्शकों पर अधिक प्रभाव पड़ता है। कल्टीवेशन सिद्धांत 1960 और 1970 के दशक में जॉर्ज गेर्बनर द्वारा परिकल्पित किया गया था। 1970 के दशक की शुरुआत के साथ, टेलीविजन प्रोग्रामिंग और स्थानीय स्टेशन की कार्यप्रणाली के प्रभाव के बारे में लोगों की चिंताएं लगातार बढ़ रही थी। टीवी हिंसा की व्यापकता के प्रभाव को जानने के लिए सर्जन जनरल के कार्यालय द्वारा जनसंचार शोधकर्ताओं का एक वैज्ञानिक सलाहकार पैनल बनाया गया था। मूल रूप से गेर्बनर एंड ग्रॉस (1976- लिविंग विद टेलीविज़न : द वायलेंस प्रोफाइल, जर्नल ऑफ कम्युनिकेशन, 26,76) द्वारा प्रस्वावित कल्टीवेशन सिद्धांत बताता है कि टेलीविजन के अधिक बारंबारता (फ्रीक्वेंसी) वाले दर्शक मीडिया संदेशों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं और यह विश्वास करते हैं कि वे वास्तविक और वैध हैं।  (मास कम्युनिकेशन थ्योरी, 2010).

लोग जितना अधिक समय टेलीविजन सेट के सामने बिताते हैं, उनके द्वारा टीवी पर चित्रित वास्तविकता को ही सामाजिक वास्तविकता मान लेने की संभावना उतनी ही अधिक होती है

      कल्टीवेशन सिद्धांत को टेलीविजन देखने के दीर्घकालिक प्रभाव के रूप में माना जाता है। कल्टीवेशन अनुसंधान टेलीविजन की व्यापकता और दुनिया के बारे में विश्वासों के बीच संबंधों की पड़ताल करता है। कल्टीवेशन सिद्धांत बीसवीं सदी में सामाजिक जीवन में टेलीविजन की भूमिका पर अनूठा और मूल्यवान दृष्टिकोण प्रदान करता है। डोमेनिक (1999) के अनुसार 1970 के दशक की शुरुआत से ही टेलीविजन प्रोग्रामिंग और स्थानीय स्टेशन की कार्यप्रणाली के प्रभाव को लेकर लोगों की चिंताएं बढ़ने लगीं। टीवी हिंसा की व्यापकता के प्रभाव को जानने के लिए सर्जन जनरल के कार्यालय द्वारा जनसंचार शोधकर्ताओं का एक वैज्ञानिक सलाहकार पैनल बनाया गया था। (पृष्ठ-287)

यह लेख सैद्धांतिक आधार की वैधता का समर्थन करने के लिए गुणात्मक और मात्रात्मक दृष्टिकोण के साथ-साथ साक्ष्य के आधार पर अध्ययन के परिणाम प्रस्तुत करता है। यह अध्ययन अक्सर कार्टून देखने के बाद बच्चों के व्यवहार में आने वाले परिवर्तन, बातचीत करने संबंधी बदलाव और मनोवैज्ञानिक परिवर्तन पर केंद्रित है। इस तरह के बदलावों ने बचपन की जिज्ञासा और रचनात्मकता संबंधी बदलावों पर विराम सा लगा दिया है।

सामाजिक वैज्ञानिक अनुसंधान पद्धति को उपयोग में लाने के क्रम में डेटा संग्रह की विभिन्न तकनीकों जैसे सामग्री विश्लेषण, क्षेत्र सर्वेक्षण, मुख्य रूप से जानकारी देने वाले के साथ साक्षात्कार आयोजित किए गये। विश्लेषण के लिए मोटू-पतलू सामग्री के चयन के लिए सुविधाजनक नमूना एकत्रित करने और डेटा एकत्र करने के लिए सोद्देश्य नमूनाकरण तकनीक का उपयोग किया है। टेलीविजन और यूट्यूब पर निक चैनल की शुरुआत से लेकर 2016 के अंत तक तीन एपिसोड का चयन किया गया। शिक्षक, माता-पिता, विशेषज्ञों और बाल मनोवैज्ञानिक के साथ औपचारिक साक्षात्कार/विचार-विमर्श को शामिल किया गया है।

इसी तरह, डेटा एकत्र करने के लिए सर्वेक्षण आधारित प्रश्नावली बनाई गई। इस अध्ययन का निष्कर्ष सर्वेक्षण के डेटा के आधार पर निकाला गया है। नेपाल के नेपालगंज शहर के एक प्राथमिक विद्यालय के 200 बच्चों के बीच सर्वेक्षण किया गया। सर्वेक्षण का विश्लेषण वर्णनात्मक सांख्यिकी और तालिका बनाने के माध्यम से किया गया है।

  1. परिणाम और चर्चा 

3.1 सर्वेक्षण 

प्रतिक्रिया देने वाले 200 विद्यार्थियों में से 50 प्रतिशत निजी स्कूलों से थे और 50 प्रतिशत सरकारी स्कूलों से थे। कुल मिलाकर, छात्र 102 (51%) थे, जबकि छात्रा 98 (49%) थीं।  आयु वर्ग के अनुसार, 4-6 वर्ष की आयु वर्ग वाले 35 (18.5%) छात्र थे, 7-9 वर्ष की आयु वर्ग वाले 87 (43.5%) छात्र थे, और 69 (34.5%) 10-12 वर्ष की आयु वर्ग के थे। 

इस सर्वेक्षण से बच्चों के टेलीविजन देखने के दौरान उनकी गतिविधियों के बारे में पता चलता है। वे अपने टेलीविजन देखने की अवधि को कैसे अपने सबसे दिलचस्प धारावाहिक और किरदारों को देखने में बिताते हैं। टेलीविजन के उपयोग से संबंधित प्रश्नों का विवरणात्मक विश्लेषण निम्नलिखित पैराग्राफ में किया गया है।

तालिका 1: आप कितनी बार कार्टून चैनल देखते हैं?  

बारंबारता प्रतिशत वैध प्रतिशत कुल प्रतिशत
दैनिक 166 83.0 83.0 83.0
साप्ताहिक 31 15.5 15.5 98.5
सालाना 3 1.5 1.5 100.0
  कुल 200 100.0 100.0

(जोशी, 2016)

तालिका से पता चलता है कि साप्ताहिक, सालाना की तुलना में प्रतिदिन टीवी देखने वाले बच्चों की संख्या अधिक है। प्रतिदिन टीवी देखने वाले उत्तरदाताओं की संख्या 83 प्रतिशत है। ये परिणाम बच्चों के जीवन में टेलीविजन के महत्व और उन्हें टेलीविज़न देख़ने की कैसी लत है, के बारे में बताते हैं।

तालिका 2: आप दिनभर में कितने घंटे कार्टून देखते है ?

बारंबारता प्रतिशत  वैध प्रतिशत कुल प्रतिशत
  1 – 2 घंटे 123 61.5 61.5 61.5
  2 – 3 घंटे 72 36.0 36.0 97.5
   3 – 4 घंटे 5 2.5 2.5 100.0
    कुल 200 100.0 100.0

(जोशी, 2016)

इस अध्ययन का उद्देश्य यह जानना है कि बच्चे टेलेविजन देखने में कितने घंटे का समय व्यतीत करते हैं। अधिकांश बच्चे (61.5%) रोजाना 1-2 घंटे टेलीविजन देखते हैं, जिनकी बारंबारता 123 है।  2-3 घंटे टेलीविजन देखने वाले बच्चों का प्रतिशत 36 हैं, उनकी बारंबारता 72 है। केवल 5 (2.5%) बच्चे दिन में 3-4 घंटे Vsyhfotu  देखते हैं।

तालिका 3: आपका पसंदीदा कार्टून टीवी धारावाहिक कौन सा है?

बारंबारता प्रतिशत वैध प्रतिशत कुल प्रतिशत
मोटू-पतलू 103 51.5 51.5 51.5
डोरेमोन 28 14.0 14.0 65.5
निंजाहतौड़ी 26 13.0 13.0 78.5
उपरोक्त सभी  43 21.5 21.5 100.0
कुल 200 100.0 100.0

(जोशी, 2016)

मोटू-पतलू बच्चों द्वारा सबसे अधिक देखा जाने वाला कार्टून है, जिसकी बारंबारता 103 है, जोकि 51.5% का प्रतिनिधित्व करता है। मोटू-पतलू को इसके किरदार और कहानी की वजह से हर कोई देखता है।

तालिका 4:  आपका पसंदीदा कार्टून किरदार कौन सा है ?

बारंबारता प्रतिशत वैध प्रतिशत  कुल प्रतिशत
मोटू 114 57.0 57.0 57.0
पतलू 48 24.0 24.0 81.0
चिंगम 17 8.5 8.5 89.5
जॉन 9 4.5 4.5 94.0
अन्य 12 6.0 6.0 100.0
कुल 200 100.0 100.0

(जोशी, 2016)

मोटू अधिकांश बच्चों का पसंदीदा किरदार है, जिसकी बारंबारता 114 (57%) है। मोटू अपनी मूर्खता पूर्ण हरकत के कारण बच्चों को सबसे ज्यादा पसंद आता है। पतलू, मोटू-पतलू कार्टून का एक सचेत किरदार है और उसको पसंद किए जाने की बारंबारता 48 (24%) है। चिंगम को 8.5%, जॉन को 4.5% पसंद किया जाता है और मोटू-पतलू कार्टून के अन्य किरदार को बच्चों द्वारा पंसद किए जाने का प्रतिशत 6 है।

तालिका 5: क्या आप मोटू-पतलू कार्टून देखने के बाद अलग किस्म का व्यवहार करना पसंद करते हैं? 

बारंबारता प्रतिशत वैध प्रतिशत कुल प्रतिशत
oS/k हां 88 44.0 44.0 44.0
नहीं 74 37.0 37.0 81.0
कभी-कभार 38 19.0 19.0 100.0
कुल 200 100.0 100.0

(जोशी, 2016)

अधिकांश बच्चों ने कहा कि उन्हें मोटू-पतलू कार्टून देखने के बाद अपना व्यवहार बदलने की इच्छा होती है, जिसकी बारंबारता 88 (44%) है। कुछ बच्चे अपने व्यवहार को बदलना पसंद नहीं करते हैं, जिसकी बारंबारता 74 (37%) है और 19% बच्चे कभी-कभार अपने व्यवहार को बदलना पसंद करते हैं। यह दर्शाता है कि अधिकांश बच्चे कार्टून धारावाहिक देखने के बाद अलग किस्म का व्यवहार करना पसंद करते हैं।

तालिका 6: क्या आप मोटू-पतलू कार्टून देखने के बाद अपनी बोल-चाल की भाषा या उच्चारण को बदलना पसंद करते हैं?

बारंबारता प्रतिशत वैध प्रतिशत कुल प्रतिशत
oS/k हां 102 51.0 51.0 51.0
नहीं 20 10.0 10.0 61.0
कभी-कभार 78 39.0 39.0 100.0
कुल 200 100.0 100.0

(जोशी, 2016)

अपनी बोल-चाल की भाषा को बदलना पसंद करने वाले बच्चों की बारंबारता 102 (51%) है, और 10% बच्चे कार्टून में बोली जाने वाली भाषा का उपयोग करना पसंद नहीं करते हैं। लेकिन 39% बच्चों ने कहा कि कभी-कभार वे अपनी बोल-चाल की भाषा बदलना पसंद करते हैं।

इसी तरह, मुझे मोटू-पतलू कार्टून किसके साथ देखना पसंद है, यह कथन दर्शाता है कि 37.5% बच्चे अपने दोस्तों के साथ और 32.5% बच्चे अकेले मोटू-पतलू कार्टून देखना पसंद करते हैं। सिर्फ 15 % बच्चे अपने माता-पिता और भाई-बहन के साथ कार्टून देखना पसंद करते हैं जिसकी बारंबारता 30 है।

एक अन्य कथन, मुझे मोटू-पतलू कार्टून के बारे में चर्चा करना पसंद है, का परिणाम यह दिखाता है कि 47.5% बच्चे दोस्तों के साथ चर्चा करना पसंद करते हैं, 44.5% भाई-बहनों के साथ, 6% माता-पिता के साथ और 2% बच्चे सभी के साथ चर्चा करना पसंद करते हैं। यह दर्शाता है कि अधिकांश बच्चे अपने दोस्तों या भाई-बहनों के साथ कार्टून के बारे में चर्चा करना पसंद करते हैं, क्योंकि उनके समझने का स्तर एक समान होता है ।

तालिका 7: मुझे होमवर्क खत्म करने बाद मोटू-पतलू कार्टून देखना अच्छा लगता है।

बारंबारता प्रतिशत वैध प्रतिशत कुल प्रतिशत
oS/k हां 160 80.0 80.0 80.0
नहीं 40 20.0 20.0 100.0
कुल 200 100.0 100.0

(जोशी, 2016)

तालिका&7 से पता चलता है कि अधिकांश छात्र होमवर्क खत्म करने के बाद कार्टून देखते हैं, जिसकी बारंबारता 160 (80%) है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वे स्कूल के कड़े नियम के कारण पहली प्राथमिकता होमवर्क को देते हैं। 20% बच्चे बिना होमवर्क किए कार्टून देखते हैं।

तालिका 8:  मैं मोटू-पतलू कार्टून किरदारों का कैरिकेचर बना सकता हूं। 

बारंबारता प्रतिशत वैध प्रतिशत कुल प्रतिशत
oS/k हां 196 98.0 98.0 98.0
नहीं 4 2.0 2.0 100.0
कुल 200 100.0 100.0

(जोशी, 2016)

तालिका &8 से पता चलता है कि मोटू-पतलू कार्टून का कैरिकेचर बनाने वाले बच्चों की बारंबारता 196 (98%) है। इससे पता चलता है कि बच्चों को कार्टून की कितनी अधिक लत हैं।

उत्तरदाताओं से इस कथन मुझे लगता है कि मोटू-पतलू कार्टून दोस्ती को बढ़ावा देता हैके बारे में पूछा गया। अधिकांश बच्चे सोचते हैं कि मोटू-पतलू कार्टून, मोटू और पतलू किरदार जैसी दोस्ती को बढ़ावा दे रहा है। इस सोच की बारंबारता 116 है और 58% बच्चों प्रतिनिधित्व करती है, जबकि 42% बच्चे ऐसा नहीं सोचते हैं कि मोटू-पतलू कार्टून दोस्ती को बढ़ावा देता है।

सर्वेक्षण में कार्टून के बारे में उत्तरदाताओं के दृष्टिकोण के बारे में भी बताया गया है। निम्नलिखित पैराग्राफ में उत्तरदाताओं के दृष्टिकोण पर विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। कार्टून के प्रति उत्तरदाताओं के दृष्टिकोण के विश्लेषण के लिए विवरणात्मक बारंबारता विश्लेषण किया। इसके लिए बच्चों की मनोवृत्ति का विश्लेषण करने के लिए पांच-बिन्दु लिकर्ट स्केल का प्रयोग किया। 

तालिका 9:  मैं मोटू-पतलू कार्टून चैनल देखने के बाद अपनी दैनिक बातचीत में अंग्रेजी और हिंदी शब्दों का Ikz;ksx करना पसंद करता हूं।

बारंबारता प्रतिशत वैध प्रतिशत कुल प्रतिशत
पूर्णतः सहमत 152 76.0 76.0 76.0
सहमत 18 9.0 9.0 85.0
कोई राय नहीं 30 15.0 15.0 100.0
कुल 200 100.0 100.0

(जोशी, 2016)

पूर्णतः सहमत होने वाले बच्चों का कुल प्रतिशत 76% है और 9% बच्चे सहमत हैं कि “मुझे अपनी रोजमर्रा की बातचीत में अंग्रेजी और हिंदी शब्दों का उपयोग करना पसंद है”, जबकि 15% बच्चों को पता नहीं है कि वे इस तरह के शब्दों का प्रयोग अपनी बातचीत में करते हैं या नहीं। यह तालिका दर्शाती है कि बच्चे वास्तव में विदेशी भाषा से प्रभावित होते हैं।

तालिका 10:  मुझे मोटू-पतलू कार्टून चैनल पर लड़ाई और हिंसा देखना पसंद है।

बारंबारता प्रतिशत वैध प्रतिशत कुल प्रतिशत
oS/k पूर्णतः सहमत 59 29.5 29.5 29.5
सहमत 90 45.0 45.0 74.5
कोई राय नहीं 27 13.5 13.5 88.0
पूर्णतः असहमत 16 8.0 8.0 96.0
असहमत 8 4.0 4.0 100.0
कुल 200 100.0 100.0

(जोशी, 2016)

बच्चे “लड़ाई और हिंसा देखना पसंद करते हैं”, इस सवाल से सहमत होने वाले बच्चों का प्रतिशत 45% है, और 29.5% बच्चे इससे पूर्णतः सहमत हैं। 8% बच्चे इससे असहमत है और 13.5% बच्चों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है या उनकी कोई राय नहीं है।

तालिका 11: मुझे मोटू-पतलू dkVwZuksa esa fn[kk;k जाने वाला टकराव, विवाद और झगड़ा पसंद है।

 

बारंबारता प्रतिशत वैध प्रतिशत कुल प्रतिशत
oS/k पूर्णतः सहमत 65 32.5 32.5 32.5
सहमत 70 35.0 35.0 67.5
कोई राय नहीं 31 15.5 15.5 83.0
पूर्णतः असहमत  26 13.0 13.0 96.0
असहमत 8 4.0 4.0 100.0
कुल 200 100.0 100.0

(जोशी, 2016)

तालिका-11 से पता चलता है कि अधिकांश बच्चे मोटू-पतलू कार्टून में दिखाए जाने वाले “टकराव, विवाद और झगड़े को पसंद करते हैं।” 35% बच्चे इस कथन से सहमत हैं और 32.5% बच्चे इससे असहमत हैं। 

मुझे मोटू-पतलू कार्टून चैनल में दिखाए जाने वाले विदेशी त्योहार को मनाना अच्छा लगता है, के बारे में पूछे जाने पर 60% बच्चे इस कथन से पूर्णतः सहमत हैं कि वे विदेशी त्योहारों को मनाना पसंद करते हैं, जिसकी बारंबारता 121 है और 23% बच्चे भी इस कथन से सहमत हैं। सिर्फ 2% बच्चे इस कथन से पूर्णतः असहमत हैं और 9% बच्चे इस कथन से असहमत हैं। 

मैं मोटू-पतलू कार्टून चैनल में लोकप्रिय फास्ट फूड और व्यंजन को पसंद करता हूं के बारे में अध्ययन से पता चलता है कि 51 प्रतिशत बच्चे इस बात से सहमत हैं कि वे मोटू-पतलू कार्टून में दिखाये जाने वाले फास्ट फूड और व्यंजन को पसंद करते हैं, जिसकी बारंबारता  102 है, जबकि 31% बच्चे इससे पूर्णतः सहमत हैं। लेकिन, 9% बच्चे अपनी पसंद के बारे में जानते हैं, 1% बच्चे इस कथन से पूर्णतः असहमत हैं और 8% बच्चे इससे असहमत हैं। परिणाम से पता चलता है कि अधिकांश बच्चे टेलीविजन पर दिखाए जाने वाले फास्ट फूड और व्यंजन को पसंद करते हैं, जो उनके स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है।

इसी तरह, मैं मोटू-पतलू के सभी कार्टून किरदारों के नाम याद कर सकता हूंइस कथन को लेकर पूर्णतः सहमत और सहमत होने वाले बच्चों का प्रतिशत मिलता-जुलता है। अधिकांश बच्चे कार्टून किरदारों के नाम को याद कर सकते हैं, जिसकी बारंबारता क्रमशः 91 (45.5%) और 89 ((45.5%) है। इस कथन के बारे में कोई राय नहीं रखने वाले बच्चे 2% हैं और 8% बच्चे इससे असहमत हैं। इससे पता चलता है कि बच्चे कार्टून से कितने परिचित हैं, क्योंकि वे सभी किरदारों से परिचित हैं। 

इसी तरह, सर्वेक्षण का उद्देश्य mxzrkiw.kZ कथन के बारे में उत्तरदाताओं के दृष्टिकोण की पड़ताल करना भी है। अतः अध्ययन ने हिंसा और आक्रामकता की उपश्रेणियों के माध्यम से उत्तरदाताओं के दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया है। mxzrkiw.kZ कथन का उपयोग बच्चों की आक्रामकता के स्तर को जानने के लिए किया जाता है।

तालिका 12: मुझे अपने दोस्तों को लात मारना, मारना या मुक्का मारना पसंद है, ठीक वैसे ही जैसे मैं कार्टून में देखता हूं।

बारंबारता  प्रतिशत वैध प्रतिशत कुल प्रतिशत
पूर्णतः सहमत  31 15.5 15.5 15.5
सहमत 46 23.0 23.0 38.5
कोई राय नहीं 30 15. 15.5 54.0
पूर्णतः असहमत 64 32.0 31.0 85.0
असहमत 29 14.5 14.5 99.5
100.0
कुल 200 100.0 100.0

(जोशी, 2016)

तालिका-12 से पता चलता है कि अधिकांश बच्चे इस बात से असहमत हैं कि वे अपने दोस्तों को लात मारना, मारना या मुक्का मारना पंसद करते हैं, जिस तरह से वे कार्टून में देखते हैं, जिसकी बारंबारता 62 (31%) है। इस कथन से सहमत होने वाले बच्चों की बारंबारता 46 (23%) हैं। 

शत-प्रतिशत बच्चे इस कथन से पूर्णतः सहमत है कि Ekq>s उड़ते हुए किरदार देखना पसंद है। यह दर्शाता है कि अधिकांश बच्चों को काल्पनिक और साहसिक कार्य पसंद है। 

मुझे दीवार पर चढ़ना पसंद है, इस कथन के परिणाम से पता चलता है कि 35% बच्चे इस बात को नहीं जानते हैं कि उन्हें दीवार पर चढ़ना पसंद है या नहीं। इस कथन से सहमत होने वाले बच्चों का प्रतिशत 26 है और 22.5% बच्चे दीवार पर चढ़ना पसंद नहीं करते हैं। वहीं 10% बच्चे दीवार पर चढ़ने से पूर्णत असहमत है और 6% बच्चे पूर्णतः सहमत हैं, जिस तरह से मोटू-पतलू कार्टून में दर्शाया जाता है। 

बच्चे वही करना पसंद करते हैं, जो कार्टून के किरदार करते हैं, इस कथन से पूर्णत सहमत 71% और  24.5% सहमत है, जिसकी बारंबारता क्रमशः 143 और 49 है। सिर्फ 3% बच्चे इस कथन से पूर्णतः असहमत हैं और 1% बच्चे असहमत हैं। मुझे वह करना पसंद है, जो किरदार करते हैं इस कथन का परिणाम बच्चों पर Vsyhfotu के प्रभाव को दर्शाता है।

3.2 विषय-वस्तु का विश्लेषण

मोटू-पतलू एक कॉमेडी सीजीआई एनिमेटेड टीवी सीरीज है, जो निकलोडियन भारतीय टेलीविजन चैनल पर प्रसारित होती है। यह सीरीज बच्चों की व्यंग्य पुस्तिका लोट पोटसे ली गई है। कार्टून की कहानी 2 दोस्तों, मोटू  और पतलू पर केंद्रित है, जो फुरफुरी नगरियानामक एक काल्पनिक शहर में रह रहे हैं। 

इस अध्ययन को अधिक विश्वसनीय बनाने के लिए विश्लेषण के लिए कार्टून के 3 एपिसोड (पायलट ट्रेनिंग, डायमंड रॉबरी और बॉडी कंट्रोल मशीन) का उपयोग किया गया है। यह हास्य शैली से भरपूर है और यह मूल रूप से एक मजेदार धारावाहिक है जो केवल बच्चों का मनोरंजन करता है। यह शैक्षिक या सूचनात्मक से जुड़े मुद्दे पर आधारित नहीं हैं। लड़ाई, हिंसा, हास्य, अत्यधिक कल्पनाशीलता और वैसी फंतासी पर केंद्रित है, जिसे वास्तविक दुनिया में अमल में नहीं लाया जा सकता है। उदाहरण के लिए: जैसे, मोटू-पतलू, की तरह यदि बच्चा ऊंचाई से छतरी के साथ उड़ने की कोशिश करे, तब इसके नतीजे का कौन जिम्मेदार होगा ? नतीजा क्या होगा ? इससे जुड़ा एक तथ्य यह भी है कि बच्चे इसके एपिसोड को देखकर चीजों को लेकर बहुत लालायित और जिद्दी हो जाते हैं। इस धारावाहिक की सकारात्मक बात दोस्ती है, जो जीवन का अधिक सहायक पहलू है।

इस क्षेत्र में उपलब्ध साहित्य भी इस अध्ययन के दौरान प्राप्त तथ्यों की पुष्टि करता है। ओडुकोमैया (2014) ने पाया कि यह उम्मीद की गई थी कि बच्चों को कार्टून से मिलने वाले आनंद के कारण उनमें कई बुरी आदतें पैदा हो जाती हैं, जो उन्हें उन पर निर्भर बनाती हैं। कार्टून बच्चों के जीवन के विकास के चरणों में उनकी सामाजिक और नैतिक भावना को प्रभावित करते हैं। यह निर्धारित करता है कि उनके जीवन के प्रारंभिक चरण के दौरान लंबे समय तक कार्टून देखने के बाद हिंसा और आक्रामकता किस स्तर तक हावी होती है।

3.3  साक्षात्कार

प्याकुरल1 के अनुसार अधिकांश बच्चे लंच और खाली समय में मोटू-पतलू के बारे में बातें करते हैं और कक्षा में भी वे खुद को कार्टून किरदार के रूप में प्रस्तुत करते हैं। खत्री2 ने भी प्याकुरल से सहमति व्यक्त की और कहा कि अधिकांश बच्चे मोटू-पतलू कार्टून से प्रभावित हैं और अधिकांश माता-पिता अपने बच्चों को व्यस्त रखने के लिए अधिक होमवर्क देना पसंद करते हैं, ताकि उनके पास टेलीविजन देखने का समय न हो।

माता-पिता अपने विचार साझा करते हैं, कार्टून देखने के बाद उनके बच्चों के बातचीत करने के तरीके, मेल-जोल संबंधी व्यवहार में बदलाव आ जाता है और माता-पिता यह भी बताते gSa

 कि कार्टून देखने के बाद बच्चों की गन, पिस्टल जैसे हथियारों के प्रति मांग भी बढ़ गई है, जिसे वह मोटू-पतलू कार्टून में देखते हैं। 

थापा3 ने कहा कि उनके बेटे ने कार्टून देखने के बाद अलग तरह से व्यवहार करना शुरू कर दिया और उन्होंने कहा कि जब उन्होंने टेलीविजन बंद कर दिया या उसे टेलीविजन पर कार्टून देखने से रोकने की कोशिश की, तो वह नाराज हो जाता है और आक्रामक व्यवहार करने लगता है। चौधरी4 भी थापा से सहमत थे और उनके लिए अपने बच्चों की मांग को पूरा करना मुश्किल था। उन्होंने कहा कि बच्चे जो कार्टून में देखते हैं, उसकी तुरंत मांग करने लगते हैं।

कार्टून देखने में अधिक समय व्यतीत करने वाले बच्चों के व्यवहार में आने वाले परिवर्तन को लेकर बच्चों के समग्र विकास की जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ चिंतित है, क्योंकि वे अकेले रहने लगते हैं। वे बच्चे सामाजिक मेल-जोल, सामाजिक व्यवस्था और मानदंडों को नजरअंदाज करने लगते हैं और वे माता-पिता, दोस्तों व रिश्तेदारों की तुलना में टेलीविजन के साथ अधिक समय बिताना पसंद करते हैं। उनकी मांगें बढ़ती जाती हैं और माता-पिता के लिए असमंजस की स्थिति बन जाती है।

मनंधर5 के अनुसार, विदेशी कार्टून का प्रभाव पूरी तरह से नकारात्मक हैं और उन्होंने सोचा कि इन कार्टून चैनलों का एक विकल्प होना चाहिए, जिसमें विज्ञान, गणित, इतिहास और अन्य विषयों के बारे में हमारी अपनी भाषा में मनोरंजन और ज्ञान दोनों का समावेश हो, जो उनका मनोरंजन करे और उन्हें शिक्षा प्रदान करे।  ढीतल6 भी उनकी बात से सहमत हैं और उन्होंने कहा कि सरकारी या स्थानीय चैनल आपस में मिलकर एक ऐसे कार्टून सीरीज और कठपुतली कार्यक्रम का निर्माण कर सकते हैं, जो नेपाली संदर्भ से जुड़ी हो और उत्पादन लागत के खर्च को कम करे। कासाजू7 के अनुसार, माता-पिता के मार्गदर्शन की कमी के कारण बच्चे कार्टून एनिमेशन के प्रभाव में आकर भटक जाते हैं। उन्होंने कहा कि माता-पिता को कार्यक्रम देखने के लिए बच्चे के साथ जाना चाहिए और अगर वे कार्यक्रम के वास्तविक अर्थ को परिभाषित करने में मदद करते हैं, तो यह प्रभावी हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों के कार्यक्रमों के लिए भी नए नियम की जरूरत है।

इस विषय पर कई लेख प्रकाशित हुए हैं। लेकिन किसी भी स्कॉलर ने नेपाली बच्चों पर कार्टूनों में हिंसा के प्रभाव का पता लगाने का कोई प्रयास नहीं किया है। बराल (1990) ने “टेलीविजन एंड द चाइल्ड इन नेपाल: एन असेसमेंट ऑफ व्यूइंग पैटर्न” पर शोध किया। उन्होंने बच्चों के पसंदीदा धारावाहिक और टेलीविजन पर बिताए जाने वाले समय के बारे में पता लगाने की कोशिश की। उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि कुछ कार्यक्रम का बच्चों पर असर होता हैं।

निष्कर्ष

इस विषय की व्यापकता के संबंध में, यह पाया गया कि औसतन 10 बच्चे अनजाने में कार्टून से प्रभावित थे। ये कोई मामूली बात नहीं है। इस स्थिति में, यदि कोई बच्चा दिन में 3 घंटे कार्टून देखता है, तो अधिक समय तक टीवी देखने वाला दर्शक होगा, जो टेलीविजन द्वारा पैदा की गई आक्रमकता और अकेलेपन का आदी होगा। इस अध्ययन का परिणाम बताता है कि मोटू-पतलू कार्टून से बच्चे अत्यधिक प्रभावित हैं। हालांकि, अन्य महत्वपूर्ण कारक यह है कि परिवार के सदस्य बच्चों को कम समय देते हैं; इसलिए, बच्चे अपना ज्यादातर समय कार्टून देखने में बिताते हैं। यह भी पता चलता है कि कार्टून वह कारक है जो उनकी मांग को बढ़ता है, उनके निर्णय, उनके व्यवहार में बदलाव का जरिया है और वे अपने दोस्तों, भाई-बहनों आदि के साथ किस तरह की प्रतिक्रिया करते हैं और मेल-जोल बढ़ाते हैं आदि। कार्टून बच्चों की मांग का मूल कारण भी है। जब माता-पिता उनकी मांग को पूरा नहीं करते तो बच्चे इस स्थिति में भटक जाते हैं। भविष्य के शोधों में इन पहलुओं पर ध्यान दिया जा सकता है और इससे प्रभावी, विश्वसनीय और सार्थक परिणाम माता-पिता के लिए अपने बच्चों को fj;y की दुनिया से बचाने में मददगार हो सकते हैं। इससे कई समस्याएं पैदा हो रही है और बच्चों की इस तरह की भागीदारी निश्चित रूप से हमारी आने वाली पीढ़ी को नकारात्मक या सकारात्मक रूप से प्रभावित करेगी। कार्टून के कारण बच्चे अपनी सोचने की शक्ति में कमजोर और शिक्षा संबंधी प्रदर्शन में कमजोर होते जा रहे हैं।

*लेखिका, नेपाल के सुरखेत में मिड-वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के सेंट्रल कैंपस ऑफ ह्यूमैनिटीज एंड सोशल साइंसेज के जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।

अंग्रेजी से अनुवादः मोनिका/मनजीत सिंह

References

  1. Laxmi Pyakurel (a teacher of Dhamboji Secondary School, Nepalgunj)
  2. Gita Khatri (a teacher of  City Public School, Nepalgunj)
  3. Tara Thapa ( Parents of 9 years boy)
  4. Hiralal  Chaudhari ( Parents of three children)
  5. Santa Das Manandhar (child Activist and child literature writer)
  6. Tirak Dhital ( Executive director of Child Centered Welfare Broad Nepal)
  7. Binaya Kasajoo (Child Educationist)

 

Bibliography

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