Magazine

पुस्तक मेले से दूर होती भारतीय भाषाएं : एनबीटी सर्वे

भारत सरकार के उच्च शिक्षा विभाग के तहत 1957 में नेशनल बुक ट्रस्ट की स्थापना की गई थी। भारतीय भाषाओं  में समाज में पढ़ने की रुचि बढ़ाने के लिए विभिन्न स्तरों पर काम करना इसके मुख्य उद्देश्यों में शामिल है। यह हर वर्ष नई दिल्ली में विश्व पुस्तक मेले का आयोजन करता है। ट्रस्ट देश भर में प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर के किताब मेले और प्रदर्शनी का भी आयोजन करता है।

विश्व पुस्तक मेला 2014  में भाषावार शामिल प्रकाशकों का ब्यौरा

क्रम. सं. भाषा कुल प्रकाशनों की संख्या प्रतिभागी (% में)   आवंटित स्टॉलों की संख्या स्टाल आवंटन (% में)
1. असमिया 03 0.27 03 0.13
2. बांग्ला 05 0.46 05 0.22
3. अंग्रेजी 643 58.56 1785 78.50
4. गुजराती 02 0.18 02 0.13
5. हिन्दी 323 29.42 309 13.59
6. कश्मीरी 01 0.09 01 0.04
7. मैथली 01 0.09 01 0.04
8. मलयालम 12 1.09 15 0.66
9. मराठी 02 0.18 02 0.13
10. उड़िया 01 0.09 01 0.04
11. पंजाबी 06 0.55 06 0.26
12. संस्कृत 18 1.64 21 0.92
13. तमिल 05 0.46 06 0.26
14. तेलगू 02 0.18 02 0.13
15. उर्दू 44 4.01 49 2.15
16. विदेशी प्रतिभागी 30 2.73 66 2.90
कुल 1098 100 2274 100

तालिका 1  

हिन्दी की वास्तविक स्थिति

2014  के विश्व पुस्तक मेले में भारतीय भाषाओं की पुस्तकों के प्रकाशन और प्रकाशकों के हालात का अंदाजा तालिका-1 में प्रकाशकों की संख्या को देखकर लगाया जा सकता है। विश्व पुस्तक मेले में अंग्रेजी की तुलना में हिन्दी के प्रकाशकों की उपस्थिति आधी है। लेकिन यह भी वास्तविक उपस्थिति नहीं है। हिन्दी के प्रकाशकों की वास्तविक संख्या और भी कम है। अंग्रेजी के मुकाबले हिन्दी के प्रकाशकों की मेले में उपस्थिति को दर्शाने में उक्त संख्या में ये तथ्य भी शामिल है कि हिन्दी के बड़े प्रकाशकों ने दस-दस प्रकाशन गृह खोल रखे हैं और उन सभी प्रकाशन गृहों के नाम से मेले में स्टॉल आवंटित किए गए जबकि मेले में उनकी उपस्थिति उन प्रकाशन गृहों के नाम से नहीं होती है। बल्कि वे एक प्रकाशन के बड़े बैनर के लिए जगह घेरने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले नाम भर हैं। 2014 में ऐसे 11 प्रकाशकों ने 93 स्टॉल लगाए। आंकड़ों के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि 11 प्रकाशकों ने हिन्दी के कुल स्टॉल्स में से 30 प्रतिशत स्टॉल लगाए। यानी लगभग तीन प्रतिशत हिन्दी के प्रकाशकों के अधीन 30 प्रतिशत स्टॉल थे।

विश्व पुस्तक मेले में भारतीय भाषाओं की उपस्थिति ज्यादा से ज्यादा सुनिश्चित हो सके, इस तरह के प्रयास को भी काफी पीछे छोड़ा दिया गया है। इसके संकेत मिलते हैं। जन मीडिया (अंक 37)1 में 2014 के मेले में भारतीय भाषाओं की उपस्थिति का एक अध्ययन प्रस्तुत किया गया था। यह अध्ययन 2014 के बाद 2016 और 2017 के मेले का तुलनात्मक अध्ययन है। 2014 की तुलना में 2016 में भारतीय भाषाओं की उपस्थिति के रुझान को समझा जा सकता है। इस अध्ययन में मेले में तीन प्रतिशत हिन्दी के प्रकाशकों द्वारा 30 प्रतिशत स्टॉल लेने की प्रवृत्ति को शामिल नहीं किया गया है। क्योंकि यह एक स्थायी प्रवृत्ति बन चुकी है। हिन्दी के स्टॉलों के लिए दी जाने वाली सुविधाओं का लाभ कई प्रकाशन गृहों के नाम पर बड़े प्रकाशक ले लेते हैं और उन्हें एक तरह से स्वीकृति प्राप्त है। हम यहां भारतीय भाषाओं और प्रकाशनों की संख्या के कम होते जाने का अध्ययन प्रस्तुत कर रहे हैं।

2016 के पुस्तक मेले में भारतीय भाषाओं की उपस्थिति

क्रम. सं. भाषा कुल प्रकाशनों की संख्या प्रतिभागी (%में)
1. असमिया 01 0.11
2. बांग्ला 04 0.47
3. अंग्रेजी 483 56.82
4. गुजराती 01 0.11
5. हिन्दी 289 34
6. कश्मीरी 00 0.00
7. मैथली 00 0.00
8. मलयालम 06 0.70
9. मराठी 01 0.11
10. उड़िया 02 0.23
11. पंजाबी 10 1.17
12. सिंधी 01 0.11
13. तमिल 04 0.47
14. तेलगू 00 0.00
15. उर्दू 21 2.47
16. विदेशी प्रतिभागी 27 3.17
कुल 850 100

 

(तालिका 2)

2014 की तुलना में भारतीय भाषाओं में असमिया प्रकाशन की संख्या मेले में घटकर एक पर पहुंच गई तो बांग्ला की चार, गुजराती की एक, मराठी की एक पर पहुंच गई। दूसरी तरफ कश्मीरी, मैथली, तेलगू की उपस्थिति मात्र भी खत्म हो गई। तमिल प्रकाशनों की संख्या भी चार पर पहुंच गई। केवल पंजाबी भाषा के प्रकाशनों की संख्या में इजाफा दिखाई देता है। 2014 की तुलना में 2016 में उर्दू प्रकाशनों की संख्या आधे से भी कम हो गई। लेकिन 2016 में विश्व पुस्तक मेले में प्रकाशन और खासतौर से भाषावार प्रकाशनों में पुस्तक मेले के जरिये जो रुझान दिखाई देता है, वह गौरतलब है।

जनवरी 2017 में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में भारतीय भाषाओं की उपस्थिति 

क्रम. सं. भाषा कुल प्रकाशनों की संख्या प्रतिभागी (% में)
1. असमिया 00 0.00
2. बांग्ला 07 0.89
3. अंग्रेजी 448 58.56
4. गुजराती 01 0.12
5. हिन्दी 272 34.60
6. कश्मीरी 00 0.00
7. मैथली 00 0.00
8. मलयालम 06 0.76
9. मराठी 01 0.12
10. उड़िया 01 0.12
11. पंजाबी 10 1.27
12 संस्कृत

 

03 0.38
सिंधी 03 0.38
13. तमिल 01 0.12
14. तेलुगू 01 0.12
15. उर्दू 16 2.03
16. विदेशी प्रतिभागी 19 2.41
  कुल 786 100

(तालिका 3)

2016 में भारतीय भाषाओं की विश्व पुस्तक मेले में उपस्थिति कम होने का जो रुझान दिखाई दिया उसमें सुधार लाने के प्रयास किए गए, यह 2017 के पुस्तक मेले में दिखाई नहीं देता है। बल्कि उस रुझान की दिशा अपनी गति की तरफ तेजी से बढ़ रही है। पहली बात तो विश्व पुस्तक मेले में प्रकाशनों की उपस्थिति लगातार कम होने का रुझान दिखाई देता है। 2014 के बाद 2016 में कुल प्रकाशनों की संख्या में जो कमी देखी गई, वह कमी 2017 में और बढ़ी। इस वर्ष केवल 786 प्रकाशनों ने ही हिस्सेदारी की।

मेले में गायब होने वाली भारतीय भाषाओं में असमिया इस वर्ष शामिल हो गई। उत्तर पूर्व के राज्यों की बड़ी भाषा असमिया की उपस्थिति अनुपस्थिति में परिवर्तित दिखाई देती है। कश्मीरी, मैथली में भी कोई सुधार दिखाई नहीं देता है। तेलगू अनुपस्थिति को उपस्थिति के रूप में दर्ज भर कराती है, लेकिन तमिल की संख्या पिछले मेले की तुलना में केवल पच्चीस प्रतिशत रह गई। उड़िया की संख्या भी दो से एक हो गई। सिंधी और संस्कृत की उपस्थिति में थोड़ा सुधार दिखाई दिया। सिंधी के केवल एक प्रकाशन की उपस्थिति 2016 में थी जो 2017 में संस्कृत के बराबर तीन हो गई। 2016 में संस्कृत मेले से अनुपस्थित थी। लगातार जिन भाषाओं की उपस्थिति तेजी से मेले में घट रही उनमें उर्दू एक है। उर्दू के प्रकाशनों की उपस्थिति 2016 के मुकाबले और कम हो गई। यदि 2014 से तुलना करें तो उसकी उपस्थिति सत्तर प्रतिशत के आस-पास कम हुई है।

सार :

  • पिछले कई वर्षों से पुस्तक मेले में प्रकाशकों की हिस्सेदारी कम होती जा रही है।
  • प्रकाशन में भारतीय भाषाओं के प्रकाशनों की स्थिति कमजोर होती जा रही है।
  • विश्व पुस्तक मेले में भाषाओं के जरिये भारत अपने मुक्कमल रूप में उपस्थित नहीं दिखता है।
  • भाषावार प्रकाशनों में बड़े प्रकाशकों के व्यवसाय का विस्तार हुआ है। लेकिन भाषाओं के प्रकाशनों की वास्तविक संख्या में बढ़ोतरी नहीं देखने को मिल रही है।
  • वास्तविक संख्या में बौद्धिक विमर्श को विस्तार देने वाली और मौलिक प्रकाशनों की कमी बढ़ रही है। हिन्दी में जो स्ट़ॉल की संख्या दिख रही है, उस संख्या में घुसकर देखें कि कितनी धर्म-कर्म, कर्मकांडी, जादू टोना, अश्लील साहित्य की दुकानें हैं।
  • पुस्तक मेला धर्म और कर्मकांडों के प्रचार प्रसार के रूप में विस्तारित हुआ है।
  • पुस्तक मेले में स्टॉल और स्टैंड के बीच एक खाई साफ दिखती है। स्टैंडों पर बौद्धिक विमर्शों और मौलिक प्रकाशनों की संख्या बढ़ रही है।

संदर्भ –

  1. जन मीडिया अंक-37, अप्रैल, विश्व पुस्तक मेले में भारतीय भाषाओं की स्थिति का अध्ययन

Latest Videos

Subscription

MSG Events

    मीडिया स्टडीज ग्रुप (एमएसजी) के स्टैंड पर नेपाल के पर्यावरण मंत्री विश्वेन्द्र पासवान। विश्व पुस्तक मेला-2016, प्रगति मैदान, नई दिल्ली

Related Sites

Surveys and studies conducted by Media Studies Group are widely published and broadcast by national media.

Facebook

Copyright © 2023 The Media Studies Group, India.

To Top
WordPress Video Lightbox Plugin