एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया की भूमिका
एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया (एएससीआई) की स्थापना 1985 में की गई थी, जो भारतीय विज्ञापन उद्योग का एक स्व-नियामक संस्थान है। इसका काम भ्रामक विज्ञापन, अभद्र या आपत्तिजनक विज्ञापन, समाज को नुकसान पहुंचाने वाले हानिकारक विज्ञापन और प्रतिस्पर्धा में अनुचित विज्ञापन जैसे मसलों से निपटने का है। एएससीआई सभी प्रकार के मीडिया फॉर्मेट्स मसलन टीवी, प्रिंट, डिजिटल, आउटडोर, रेडियो, बिक्री केंद्र, पैकेजिंग पर किए गए दावों आदि पर गौर करता है।
भारतीय विज्ञापन मानक परिषद उपभोक्ता संरक्षण के मामले में विभिन्न स्टेकहोल्डर्स के साथ मिलकर काम करता है। एएससीआई कोड केबल टीवी नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1994 में निहित विज्ञापन कोड का हिस्सा है, जो इसे कानूनी मदद मुहैया कराता है। ASCI का त्वरित, स्वतंत्र और कम खर्च में शिकायत प्रबंधन दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करता है कि उपभोक्ताओं और उद्योग दोनों को उचित समाधान का मौका मिले।
भारतीय विज्ञापन मानक परिषद की स्वतंत्र जूरी (उपभोक्ता शिकायत परिषद या सीसीसी) में उद्योग और नागरिक समाज दोनों से 40 प्रतिष्ठित पेशेवर शामिल होते हैं, जो साप्ताहिक आधार पर शिकायतों की समीक्षा करते हैं और अपनी सिफारिशें देते हैं। हाईकोर्ट के चार सेवानिवृत्त न्यायाधीश उन शिकायतकर्ताओं या विज्ञापनदाताओं की अपील सुनते हैं जो सीसीसी की सिफारिश को चुनौती देना चाहते हैं। 20 से अधिक क्षेत्रों के प्रतिष्ठित तकनीकी विशेषज्ञ सीसीसी और समीक्षा पैनल में हैं।
2023-24 में स्वास्थ्य संबंधित भ्रामक विज्ञापन सबसे अधिक
भारतीय विज्ञापन मानक परिषद की वार्षिक शिकायत रिपोर्ट के अनुसार, 2023-24 में विज्ञापन मानदंडों का उल्लंघन करने वाले 19 प्रतिशत से अधिक विज्ञापन स्वास्थ्य संबंधित थे। पिछले वित्तीय वर्ष में टेलीविज़न, प्रिंट, डिजिटल मीडिया और ओवर-द-टॉप (OTT) मीडिया सर्विसेज जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर कुल 8,229 विज्ञापनों में से, जिन्हें उल्लंघनकारी पाया गया और विज्ञापन नियामक द्वारा उनकी जांच की गई, उनमें 1,569 हेल्थ सेक्टर में थे, इसके बाद ऑनलाइन सट्टेबाजी के विज्ञापन थे।
स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के भीतर, 1,249 विज्ञापन सीधे तौर पर औषधि और जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 का उल्लंघन कर रहे थे। यह कानून जादुई गुणों से भरपूर होने का दावा करने वाली दवाओं और उपचारों के विज्ञापनों को प्रतिबंधित करता है, और ऐसा करना एक संज्ञेय अपराध होता है।
डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर सबसे अधिक भ्रामक विज्ञापन
हाल ही में जारी रिपोर्ट से पता चलता है कि स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में अवैध पाई गई लगभग 86 प्रतिशत दवाएं डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर थीं। इनमें से अधिकांश विज्ञापन वेबसाइट (मार्केटप्लेस से) थे और उनमें से 91 प्रतिशत धारा 3 (बी) का उल्लंघन करते थे, जो यौन शक्ति को बनाए रखने और उसमें वृद्धि से संबंधित हैं, एएससीआई ने कहा है कि इनमें से 239 विज्ञापनों को आगे की कार्रवाई के लिए केंद्रीय आयुष (पारंपरिक चिकित्सा) मंत्रालय को रिपोर्ट किया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है, “डीएमआर अधिनियम होने के बावजूद, दवाओं/आयुर्वेदिक उत्पादों को बढ़ावा देने वाले विज्ञापनदाताओं का प्रसार जारी है, जो इन बीमारियों के इलाज और उपचार का दावा करते हैं। ये विज्ञापन उपभोक्ताओं के भरोसे का दुरुपयोग करते हैं और उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं।”
भारतीय विज्ञापन मानक परिषद की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि परिषद में पिछले कुछ वर्षों में स्वास्थ्य सेवा भ्रामक विज्ञापनों के संबंध में चिंता का विषय रही है।
ग्रैफिक-1
डिजिटल माध्यमों पर नियमों का उल्लंघन
8229 विज्ञापनों की जांच ASCI ने 2023-24 के दौरान की।
85% विज्ञापन इनमें से डिजिटल प्लेटफॉर्म से लिए गए थे।
19% से अधिक भ्रामक विज्ञापन हेल्थ सेक्टर क्षेत्र से थे।
17% भ्रामक विज्ञापन ऑनलाइन सट्टेबाजी से जुड़े हुए पाए गए।
13% विज्ञापन पर्सनल केयर थे जिन्होंने नियमों का उल्लंघन किया।
55% विज्ञापनों में इंफ्लूएंसर ने डिस्क्लोजर नियमों का उल्लंघन किया।
स्रोत : भारतीय विज्ञापन मानक परिषद
रिपोर्ट में कहा गया है, “ऐसे युग में जहां स्वास्थ्य सेवा के विकल्प प्रचुर मात्रा में हैं और जानकारी आसानी से उपलब्ध है, भ्रामक विज्ञापनों से होने वाले संभावित नुकसान को स्वीकार करना महत्वपूर्ण है जो उपभोक्ताओं के विश्वास का दुरुपयोग करते हैं और उनकी कमज़ोरी का फ़ायदा उठाते हैं।”
भारतीय विज्ञापन मानक परिषद ने कुल 1,575 विज्ञापनों को देखा, जिनमें से 99 प्रतिशत में संशोधन की आवश्यकता थी; जबकि 1,249 विज्ञापनों पर DMR अधिनियम का उल्लंघन करने के लिए कार्रवाई की गई। शेष 326 विज्ञापनों में से 190 क्लीनिक, अस्पताल या वेलनेस सेंटर के थे जो अपनी सेवाओं, देखभाल और पुरानी बीमारियों के इलाज के बारे में भ्रामक दावे कर रहे थे।
रिपोर्ट के अनुसार, अवैध विज्ञापनों में 129 फार्मा कंपनियों के विज्ञापन भी शामिल थे, जो रोकथाम और इलाज, बेहतर गुणवत्ता और नेतृत्व के बारे में दावा करते थे।
ग्रैफिक-2
इंस्टाग्राम पर भ्रामक विज्ञापन सबसे ज्यादा
42% भ्रामक विज्ञापन इंस्टाग्राम पर प्रसारित किए गए।
30% विज्ञापन वेबसाइटों पर नियमों का उल्लंघन करते पाए गए।
17% विज्ञापन फेसबुक पर भ्रामक जानकारी के साथ प्रसारित हिए।
09% एड यूट्यूब पर भ्रामक जानकारी के साथ मिले।
01% भ्रामक विज्ञापन एमएटी बुलेटिन/ई-मेलर/गूगूल एड वर्ल्ड/
0.3% भ्रामक विज्ञापन मोबाइल एप पर पाए गए।
0.3% भ्रामक विज्ञापन जांच में ट्विटर पर मिले।
0.2% विज्ञापनों की ओटीटी पर शिकायत की गई।
0.2% भ्रामक विज्ञापन ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर मिले।
0.2% भ्रामक विज्ञापन लिंक्डइन पर पाए गए।
स्रोत : भारतीय विज्ञापन मानक परिषद 2023-24
इंडियन मेडिकल एसोशिएशन के एक वरिष्ठ सदस्य ने द प्रिंट को बताया कि डीएमआर अधिनियम में भ्रामक विज्ञापनों और आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाओं सहित दवाओं और औषधीय पदार्थों के अतिरंजित दावों पर रोक लगाने के प्रावधान शामिल हैं, लेकिन वास्तविकता में प्रावधानों को शायद ही कभी लागू किया जाता है। आईएमए सदस्य ने कहा कि मामले अदालतों में पहुंचने तक सालों तक खिंच जाते हैं।
भ्रामक विज्ञापनों पर अंकुश लगाने के लिए एक सकारात्मक कदम 2018 में उठाया गया था, जब स्वास्थ्य पर संसदीय स्थायी समिति के निर्देशों का पालन करते हुए सरकार ने औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों में विशेष रूप से आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाओं के अनुचित विज्ञापनों को नियंत्रित करने के लिए नियम 170 को शामिल करने के लिए संशोधन को अधिसूचित किया था।
केंद्र ने अनिवार्य किया था कि आयुष दवाओं के विज्ञापनों के मामले में उनके निर्माताओं को राज्य लाइसेंसिंग अधिकारियों से पूर्व अनुमति लेनी होगी। नियम ने राज्य सरकारों को “किसी भी परिसर में प्रवेश करने, तलाशी लेने या किसी भी रिकॉर्ड की जांच करने या जब्त करने का अधिकार दिया होता जो कथित भ्रामक या अनुचित विज्ञापनों से संबंधित अधिनियम के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करता हो”। लेकिन, प्रावधान को कभी लागू नहीं किया गया क्योंकि पारंपरिक दवा निर्माताओं ने इसे बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी, जिसने इसके संचालन पर रोक लगा दी।
सोशल मीडिया ‘इंफ्लूएंसर्स’ के लिए नई गाइडलाइंस
केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया ‘इंफ्लूएंसर्स’ के लिए नई गाइडलाइंस जारी की है। दिशानिर्देश के मुताबिक, सभी इंफ्लूएंसर्स के लिए किसी प्रोडक्ट या सर्विस का प्रचार करते समय अपने ‘जुड़ाव’ और हितों का खुलासा करना अनिवार्य होगा। अगर कोई भी इंफ्लूएंसर ऐसा नहीं करता है तो फिर उस ऐड को बैन करने जैसे सख्त कानूनी कदम उठाए जाएंगे। दरअसल, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर किसी प्रोडक्ट या सर्विस के बारे में अपनी राय रखकर लोगों को प्रभावित करने वालों को ‘इंफ्लूएंसर’ कहते हैं। वर्ष 2025 तक सोशल मीडिया ‘इंफ्लूएंसर’ का बाजार लगभग 2,800 करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मशहूर हस्तियों, ‘इंफ्लूएंसर’ और ‘ऑनलाइन’ मीडिया ‘इंफ्लूएंसर’ के बारे में नए गाइडलाइंस उपभोक्ता मामलों के विभाग ने जारी किए हैं। उल्लंघन की स्थिति में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत भ्रामक विज्ञापन के लिए निर्धारित जुर्माना लगाया जाएगा।
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) भ्रामक विज्ञापन के संबंध में प्रोडक्ट्स के मैन्युफैक्चरर, एडवरटाइजर्स और इंफ्लूएंसर पर 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगा सकती है। अगर इन नियमों का बार-बार उल्लंघन किया जाता है जुर्माने की रकम बढ़ाकर 50 लाख रुपये तक की जा सकती है।
प्रस्तुति
वरूण शैलेश