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आबादी पर मीडिया का दृष्टिकोण

वरुण शैलेश

जनगणना-2011 के मुताबिक भारतीय मुस्लिमों की आबादी पिछले दशकों की तुलना में बहुत धीमी गति से बढ़ी है और इनकी वृद्धि दर हिन्दू आबादी के मुकाबले तेजी से कम हुई है। भारतीय इतिहास के एक दशक में मुस्लिमों की वृद्धि दर में सबसे ज्यादा कमी जनगणना 2011 में है। भारत में पिछले 10 वर्षों में हिंदुओं और मुसलमानों की आबादी बढ़ने की दर में गिरावट आई है। ऐसा भारत में जनसंख्या में बढ़ोतरी की दर में आई कमी की वजह से हुआ है। ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन, इन सभी समुदायों की जनसंख्या वृद्धि की दर में गिरावट आई है। जनगणना-2011 के मुताबिक़ हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि दर 16.76 फीसदी रही जबकि 10 साल पहले हुई जनगणना में ये दर 19.92 फ़ीसदी पाई गई थी। भारत में मुसलमानों की आबादी 29.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी जो अब गिरकर 24.6 फ़ीसदी हो गई है। धार्मिक आबादी की गणना के विश्लेषण में जब केवल हिन्दू और मुसलमान आबादी की तुलना करने की पद्दति अपनाई जाती है तो ये दावा किया जा सकता है कि भारत में मुसलमानों की दर अब भी हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि दर से अधिक है। लेकिन यह भी सच है कि मुसलमानों की आबादी बढ़ने की दर में हिंदुओं की तुलना में अधिक गिरावट आई है। ईसाइयों की जनसंख्या वृद्धि दर 15.5 फ़ीसदी, सिखों की 8.4 फ़ीसदी, बौद्धों की 6.1 फ़ीसदी और जैनियों की 5.4 फ़ीसदी है। जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक़ देश में हिंदुओं की आबादी 96.63 करोड़ है, जो कि कुल जनसंख्या का 79.8 फ़ीसदी है। वहीं मुसलमानों की आबादी 17.22 करोड़ है, जो कि जनसंख्या का 14.23 फीसदी होता है। ईसाइयों की आबादी 2.78 करोड़ है, जो कि कुल जनसंख्या का 2.3 फीसदी और सिखों की आबादी 2.08 करोड़ (2.16 फ़ीसदी) और बौद्धों की आबादी 0.84 करोड़ (0.7 फीसदी) है। 29 लाख लोगों ने जनगणना में अपने धर्म का जिक्र नहीं किया। पिछले एक दशक में किसी धर्म को नहीं मानने वालों की जनसंख्या 17.7 फीसदी की दर से बढ़ी है।

हिन्दू आबादी की दशकीय वृद्धि दर

वर्ष 1951 1961 1971 1981 1991 2001 2011
हिन्दू आबादी (करोड़ में) 30.35 36.65 45.33 56.24 69.01 82.76 96.62
वृद्धि दर (% में ) 20.76 23.68 24.07 22.71 19.92 16.76

तालिका-1 (स्रोत-आईआईपीएस इंडिया, भारत की जनगणना के आंकड़े)

मुस्लिम आबादी की दशकीय वृद्धि दर

वर्ष 1951 1961 1971 1981 1991 2001 2011
मुस्लिम आबादी (करोड़ में) 3.54 4.69 6.14 8.03 10.67 13.82 17.22
वृद्धि दर (% में) 32.49 30.92 30.78 32.88 29.52 24.60

तालिका-2 (स्रोत-आईआईपीएस इंडिया, भारत की जनगणना के आंकड़े)

जनगणना का इतिहास और साप्रंदायिकता

जनगणना का एक वैज्ञानिक उद्देश्य है। लेकिन उसका इस्तेमाल और प्रभाव विभिन्न तरह की राजनीतिक शक्तियां अपने हितों में करती है।भारत में यह धार्मिक और जातीय पहचान पर गहरा प्रभाव छोड़ता है। धार्मिक पहचान की इस कवायद ने संसदीय राजनीति के क्षेत्र में कई आयाम जोड़े हैं। ब्रिटेन में 1801 में पहली जनगणना हुई थी और उसके सात दशक बाद भारत में यह काम पहली बार ब्रिटिशकाल के दौरान करीब वर्ष 1872 के आसपास शुरू हुआ। ब्रिटेन के उलट भारत की पहली जनगणना में ही धार्मिक समुदायों की संख्या का सवाल शामिल कर लिया गया था, जबकि इंग्लैंड ( ब्रिटेन) में 2001 की जनगणना में आबादी के धार्मिक आंकड़ों के इस पहलु को शामिल किया गया। ब्रिटिश कालीन भारत में जब पहली जनगणना के धार्मिक आंकड़े सामने आए तो तीखी सांप्रदायिक प्रतिक्रियाएं देखने को मिली थीं। अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण के बाद भी सांप्रदायिक चर्चा में जनसांख्यिकीय मुद्दे प्रमुखता से कायम रहे। औपनिवेशिक और उत्तर औपनिवेशिक भारत में हिन्दू-मुस्लिम चेतना को विकसित करने और दोनों धर्मों के लोगों के बीच रिश्तों को प्रभावित करने में धार्मिक आंकड़ों के प्रकाशन ने बड़ी भूमिका अदा की।नतीजतन सांप्रदायिक बहसों में कई किस्म के मुस्लिम जनसांख्यिकीय मिथकों को जगह दी जाने लगी जिसने देश की राजनीतिक शक्ल को अंजाम दिया ।1

पूरे अध्ययन को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-

Pages from 43 jan medi Oct 2015 Final

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