वरुण शैलेश
भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) विभिन्न भाषाओं-हिंदी, अंग्रेजी, उड़िया, उर्दू और मलयालम- में पत्रकारिता के पाठ्यक्रमों का संचालन करता है। इन पाठ्यक्रमों में रेडियो एवं टेलीविजन पत्रकारिता (आरएंडटीवी) के अलावा विज्ञापन और जनसंपर्क (एड-पीआर) भी शामिल हैं। प्रस्तुत तालिका में शैक्षणिक वर्ष 2009-10 के बाद से विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए शुल्क वृद्धि (प्रति वर्ष रुपये में) इस प्रकार है:
2009-10 के बाद फीस वृद्धि (प्रतिशत में)
वर्ष | पीजी डिप्लोमा- आरएंडटीवी | पीजी डिप्लोमा-
एड-पीआर |
पीजी डिप्लोमा-
अंग्रेजी पत्रकारिता |
पीजी डिप्लोमा-
हिंदी पत्रकारिता |
पीजी डिप्लोमा-
उड़िया/उर्दू/ मलयालम |
2009-10 | 76,000 | 48,000 | 34,000 | 34,000 | 20,000 |
2010-11 | 84,000
(10%) |
53,000
(10.4%) |
38,000
(11.8%) |
38,000
(11.8%) |
22,000
(10%) |
2011-12 | 92,000
(20%) |
58,000
(20.9%) |
42,000
(23.5%) |
42,000
(23.5%) |
24,000
(20%) |
2012-13 | 92,000
(20%) |
64,000
(33%) |
46,000
(35.3%) |
46,000
(35.3%) |
26,000
(30%) |
2013-14 | 92,000
(20%) |
70,000
(45%) |
50,000
(47.1%) |
50,000
(47.1%) |
28,000
(40%) |
2014-15 | 1,00,000
(45%) |
77,000
(60%) |
55,000
(61.8%) |
55,000
(61.8%) |
30,000
(50%) |
2015-16 | 1,10,000
(45%) |
85,000
(77%) |
60,000
(76.5%) |
60,000
(76.5%) |
33,000
(65%) |
2016-17 | 1,20,000
(57%) |
93,500
(94%) |
66,000
(94.1%) |
66,000
(94.1%) |
36,000
(80%) |
2017-18 | 1,32,000
(73%) |
1,02,000
(112%) |
72,000
(111.8%) |
72,000
(111.8%) |
39,000
(95%) |
2018-19 | 1,45,000
(90%) |
1,12,000
(133%) |
79,000
(132.4%) |
79,000
(132.4%) |
43,000
(115%) |
2019-20 | 1,68, 500
(121%) |
1,31,500
(173%) |
95,500
(181%) |
95,500
(181%) |
55,500
(175%) |
(इसमें लाइब्रेरी शुल्क, छात्र कल्याण निधि और कॉलेज के अन्य खर्च शामिल नहीं हैं)
पिछले एक दशक में क्रमशः आर एंड टीवी, एड-पीआर, अंग्रेजी और हिंदी पत्रकारिता पाठ्यक्रमों और क्षेत्रीय भाषा पाठ्यक्रमों में भारत सरकार के किसी भी संस्थान द्वारा 121%, 173%, 181%, 181% और 175% की मानक से अधिक की फीस वृद्धि की गई है, जो हैरान करती है।
भारतीय जनसंचार संस्थान की तरफ से 8 दिसंबर, 2019 को जारी एक बयान के मुताबिक, “आईआईएमसी एक वित्त पोषित संस्थान नहीं है, बल्कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त निकाय है। मंत्रालय के साथ एक समझौता ज्ञापन पर किए गए हस्ताक्षर के मुताबिक स्वायत्त निकाय को अपने बजट का 30 फीसदी हिस्सा आंतरिक राजस्व से जुटाना आवश्यक है।” लेकिन संस्थान की ओर से जारी बयान से यह पता नहीं चल पा रहा है कि मंत्रालय के साथ समझौता ज्ञापन पर कब हस्ताक्षर किए गए थे, और संस्थान की वेबसाइट पर भी किसी समझौता ज्ञापन और उससे जुड़ी सूचना के बारे में उल्लेख नहीं मिलता है।
दूसरी तरफ आईआईएमसी की वेबसाइट पर कहा गया है, “सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1867 के तहत पंजीकृत आईआईएमसी सोसायटी, एक स्वायत्त संस्था है, जो इस संस्थान को संचालित करती है। यह भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित है।”
आईआईएमसी भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित है, लेकिन अब संस्थान को अपने बजट का 30 फीसदी हिस्सा अपने आंतरिक राजस्व से जुटाने वाले एक ढांचे में तब्दील कर दिया गया है। यह बदलाव न सिर्फ सभी हितधारकों से बिना चर्चा के किया गया बल्कि देश के नागरिकों के लिए संस्थान की वेबसाइट पर भी इसे लेकर किसी भी तरह की कोई सूचना नहीं दी गई है।
8 दिसंबर 2019 के बयान को देखा जाए, तो सवाल उठता है कि क्या संस्थान के छात्रों पर वित्तीय बोझ डालना ही एक मात्र विकल्प बचा था? इस तरह के कदम संस्थान को आमजन से दूर करते हैं।
एक दशक पहले कार्यकारी परिषद की एक बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि हर साल पाठ्यक्रम शुल्क में 10% की वृद्धि की जाएगी। 2018-19 और 2019-20 के बीच फीस में वृद्धि मानक स्तर से ऊपर है: भाषायी पत्रकारिता पाठ्यक्रमों के लिए 27%, एड-पीआर के लिए 17% और अन्य सभी पाठ्यक्रमों के लिए 16% की वृद्धि की गई है।
कुछ दूसरे संस्थानों के फीस ढांचे को भी यहां देखा जा सकता है, जहां आईआईएमसी की तरह ही पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में एक छात्र 2000 रुपये से भी कम में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी कर सकता है। दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया में दो साल के स्नातकोत्तर (पीजी) डिग्री के लिए 70,000 रुपये की फीस है। आईआईएमसी की तरह ही इसके आरएंडटीवी पाठ्यक्रम की दस महीने की फीस 74,000 रुपये है, जो कि स्व-वित्त पोषित संस्थान है।
आईआईएमसी उस मामले में भी सबसे ऊपर है जहां छात्रों को हॉस्टल के लिए सबसे अधिक फीस का भुगतान करना पड़ता है। छात्रों को इसके लिए 5,250 रुपये प्रति महीने और लड़कियों को 6,500 रुपये प्रति महीने के हिसाब से भुगतान करना पड़ता है। उसमें भी एक कमरे में तीन लड़कों को एक साथ रहना पड़ता है जबकि लड़कियों से सिंगल रूम के लिए इतनी फीस वसूली जाती है। दिल्ली कैम्पस में सभी छात्रों को हॉस्टल मिल भी नहीं पाता है और उन्हें बाहर रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
इस संस्थान के छात्रों का एक बड़ा वर्ग कमजोर वित्तीय पृष्ठभूमि से आता है। बहुत से ऐसे भी छात्र होते हैं जिनके अभिभावक अपनी संपत्ति बेचकर या गिरवी रखकर अपने बच्चों को यहां पढ़ने के लिए भेजते हैं। कई ऐसे हैं जिनके परिवार दैनिक मजदूरी के सहारे जीवित हैं। फीस माफी के लिए छात्रों का चयन कोई रामबाण उपाय नहीं है जैसा कि संस्थान दावा करता है। क्योंकि इन समस्याओं से आबादी का बड़ा तबका जूझ रहा है।
भारी भरकम फीस का दुष्परिणाम क्या होता है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2019-20 के लिए आरक्षित वर्ग की 28 सीटें खाली रह गईं, जबकि इन सीटों को भरने के लिए कई प्रयास किए गए थे।
संस्थान के पूर्व छात्र फीस वृद्धि को शिक्षा और छात्र-विरोधी कदम मानते है, और इसे तुरंत वापस लिए जाने की मांग की हैं; उनके अनुसार सालाना 10% फीस बढ़ाने के फैसले को आगामी सभी सत्रों के लिए निलंबित कर दिया जाए और सभी हितधारकों, छात्रों और अधिकारियों सहित, जब तक एक आम सहमति नहीं बन जाती है, तब तक इस पर विचार किया जाए। अन्य सार्वजनिक शिक्षण संस्थानों के बराबर भारतीय जनसंचार संस्थान की फीस को भी लाया जाए।
फीस बढ़ोतरी के अलावा आईआईएमसी के पांचों क्षेत्रीय केंद्रों में- आइजोल, अमरावती, कोट्टायम, जम्मू और ढेंकनाल- किसी एक में भी पूर्णकालिक संकाय सदस्य नहीं है। यह मुद्दा भी छात्रों के लिहाज से बहुत चिंताजनक है।
*लेखक पत्रकार हैं।
संदर्भ सूची-
- https://www.indiastudychannel.com/attachments/Resources/167032-1-IIMC-Prospectus-2015.pdf (2015-16)
- https://www.iimc.nic.in/WriteReadData/userfiles/file/application%202016-2017/prospectus%202016-17%20English.pdf (2016-17)
- https://www.iimc.nic.in/WriteReadData/userfiles/file/17/application%20form/Prospectus%20hindi.pdf (2017-18)
- https://www.iimc.nic.in/WriteReadData/userfiles/file/18/admisition/ProspectusHi.pdf (2018-19)
- https://iimc.nic.in/WriteReadData/userfiles/file/19/prospectus%202019c.pdf (2019-20)
नोट- यहां आईआईएमसी की वेबसाइट पर उपलब्ध लिंकों को ही दिया जा रहा है। यह पूरा विश्लेषण आईआईएमसी के प्रॉस्पेक्ट्स में उपलब्ध जानकारी के आधार पर है, बाकी प्रॉस्पेक्ट्स की हार्डकॉपी उपलब्ध है।