अनिल चमड़िया/वरुण शैलेश
हिन्दी की पत्र-पत्रिकाओं की भारत के शेष हिस्से में कश्मीर के बारे में आम जन मानस के बीच एक तरह की राय बनाने में सर्वाधिक भूमिका मानी जाती है। भारत में भाषा और धर्म को मिलाने की कोशिश ब्रिटिश साम्राज्य विरोधी आंदोलन के दौरान से ही देखी जा रही है। ब्रिटिश सत्ता के दौरान से ही हिन्दी को हिन्दुओं की भाषा के रूप में स्थापित करने की विभिन्न स्तरों पर कोशिश का ही ये नतीजा है कि हिन्दी के पत्र-पत्रिकाओं के साम्प्रदायिक झगड़ों के दौरान हिन्दू पक्षी होने के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं। तकनीकी विस्तार के साथ वैसी ही भूमिका इलेक्ट्रोनिक जन संचार माध्यमों के बीच भी देखी गई। इस विषय को लेकर कई अध्ययन किए गए हैं। हिन्दी के जन संचार माध्यमों द्वारा कश्मीर को भी देखने और जन मानस को दिखाने का एक अलग नजरिया रहा है जो कि वस्तुनिष्ठ तो नहीं ही कहा जा सकता है।
हिन्दी के जन संचार माध्यम एक खास तरह के राष्ट्रवाद को लेकर राय बनाने में कश्मीर को सबसे अनुकूल महसूस करते हैं। एक तो कश्मीर मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है और दूसरा वह पाकिस्तान का सीमावर्ती क्षेत्र है। ब्रिटिश हुकूमत के बाद जब कश्मीर में शेख अब्दुल्ला ने क्रांतिकारी भूमि सुधार लागू किया तो उसे आसानी से साम्प्रदायिक रंग इसी नाते दे दिया गया क्योंकि जमीन के बड़े हिस्से के मालिक सवर्ण हिन्दू थे। पाकिस्तान देश के विभाजन के बाद इस्लामिक राष्ट्र के रूप में स्थापित हुआ जबकि भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की योजना को आम जन मानस ने खारिज कर दिया। लेकिन एक उद्देश्य के रूप में हिन्दुत्ववाद भारतीय राजनीति में एक धारा के रूप में बना रहा।
शेष भारत और खास तौर से देश के सबसे बड़े भू-भाग जिसे हिन्दी पट्टी के रूप में जाना जाता है वहां हिन्दी के जन संचार माध्यमों ने कश्मीर को लेकर एक राष्ट्रवादी दृष्टिकोण विकसित करने में कामयाबी हासिल की है जिसमें साम्प्रदायिकता के तत्व हावी है । ये भी कहा जा सकता है कि कश्मीर को लेकर हिन्दी पट्टी में एक तरह का अलगाववादी नजरिया विकसित किया गया है। कश्मीर के लोगों के साथ हिन्दी पट्टी के लोगों का रिश्ता कायम नहीं किया जा सका लेकिन दूसरी तरफ जन संचार माध्यमों ने कश्मीर के मुलसमानों को शेष भारत के मुसलमानों से जुड़े होने की प्रचार सामग्री विकसित की। जन मीडिया के पिछले अंक में भारत सरकार का एक गोपनीय दस्तावेज प्रकाशित किया गया था वह कश्मीर के बारे में सरकार की प्रचार नीति के ब्यौरे से भरा था। उसमें भी इस बात पर जो दिया गया था कि कश्मीर के मुसलमानों को देश के शेष हिस्से के मुसलमानों से रिश्ते जोड़ने का प्रचार किया जाए।
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