न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड ऑथोरिटी (एनबीएसए) के चेयरपर्सन न्यायाधीश आर. वी. रवीन्द्रन ने 31
अगस्त 2017 को जी न्यूज को 8 सितम्बर 2017 को रात नौ बजे अपना निम्नलिखित आदेश प्रसारित
करने का आदेश दिया था।
“ नई दिल्ली में आयोजित वार्षिक शंकर शाद (भारत पाक) मुशायरा के दौरान 5 मार्च 2016 को प्रो.
गौहर रजा द्वारा कविता पाठ के बारे में जी न्यूज चैनल पर 9 से 12 मार्च 2016 को “अफजल प्रेमी
गैंग का मुशायरा” के शीर्षक के साथ प्रसारित कार्यक्रम के दौरान व्यक्त किए गए विचारों एवं इस
कार्यक्रम के लिए इस्तेमाल की गई टैगलाइन के लिए “जी न्यूज़” चैनल को खेद है। इसके अलावा ज़ी
न्यूज चैनल प्रो. गौहर रजा तथा उक्त मुशायरें में भाग लेने वालों के बारे में “अफजल प्रेमी गैंग” के
नाम से दिए गए विवरण के लिए भी खेद प्रकट करता है।”
ज़ी न्यूज को स्क्रीन पर मोटे-मोटे अक्षरों में यह आदेश लिखा जाए और धीरे-धीरे पढ़ा जाए ताकि दर्शक/पाठक समझ सकें,
लेकिन उसने इस आदेश का पालन नहीं किया। तब क्या हुआ और क्या होगा? इसकी जानकारी किसी को
नहीं है। जबकि सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने बहैसियत चेयरपर्सन अपने इस आदेश की
जानकारी सभी मीडिया को भी मुहैया कराने का आदेश दिया था। इसी आदेश के तहत कई अखबारों में
इस आदेश की खबर प्रमुखता से छपी, लेकिन न्यायाधीश रवीन्द्रन का यह आदेश लागू नहीं होने के बाद
के हालात को लेकर कहीं कोई सूचना नहीं है। आखिर एनबीएसए ने अपने इस आदेश को मीडिया को
मुहैया कराने का आदेश क्यों दिया था। एनबीएसए का इरादा क्या केवल प्रो. गौहर रजा जैसे मामलों से
नाराज होने वाले टेलीविजन न्यूज के दर्शकों के बीच अपनी साख बचाने भर के लिए था?
एनबीएसए को यह भी बताना चाहिए कि यदि जी न्यूज ने उनके आदेश का पालन नहीं किया है तो वह
किस प्रकार की कार्रवाई कर रही है? रजत शर्मा को भी दिसंबर 2008 में इंडिया टीवी चैनल पर फरहान
अली के झूठे इंटरव्यू को दिखाने की शिकायत के बाद 6 अप्रैल 2009 को माफी मांगने का आदेश दिया
गया था। रजत शर्मा को केवल फरहान अली से 8 बजे से 9 बजे रात के बीच हर बारह मिनट के अंतराल
पर पांच बार खेद व्यक्त करना था। एनबीएसए ने रजत शर्मा के बारे में अपने फैसले की कॉपी को
समाचार एजेंसियों को मुहैया कराने का आदेश दिया था, लेकिन रजत शर्मा ने उस आदेश को नहीं माना
और एनबीएसए की सदस्यता ही छोड़ दी। न्यूज चैनलों के मालिकों की संस्था न्यूज ब्रॉडकास्टिंग
एसोसिएशन ने न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड ऑथोरिटी बनाई है और अपनी ओर से अपने दर्शकों को ये
वचन दिया है कि वे अपने द्वारा पत्रकारिता के लिए तैयार किए गए मानदंडों का पालन करेंगे, लेकिन
रजत शर्मा ने भी नहीं किया और ज़ी न्यूज ने भी नहीं किया।
जी न्यूज के आदेश के लागू नहीं होने के बारे में एनबीएसए में हमने बात करने कोशिश की, लेकिन वहां
इस तरह की जानकारी देने के लिए कोई आधिकारिक व्यक्ति नहीं मिलता। जिस तरह से अपने फैसलों
की कॉपी मीडिया को मुहैया कराने का आदेश न्यायाधीश देते हैं तो उन्हें नैतिक रूप से यह सूचना देने
की भी नैतिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि आदेश के लागू नहीं होने के क्या कारण हैं। आदेश के कितने
हिस्से लागू हुए। हम ये भी जानना चाहें कि एनबीएसए के कितने आदेश लागू हुए हैं तो ये जानना संभव
नहीं लगता। ये तो जानना और भी मुश्किल लगता है कि आदेशों का कितना हिस्सा लागू हुआ और जो
आदेश लागू नहीं हुए उनके बारे में एनबीएसए ने अब तक क्या किया है। एनबीएसए को इन तमाम
जानकारियों की भी प्रेस विज्ञप्ति जारी करनी चाहिए।
एनबीएसए न्यूज चैनलों पर दर्शकों से शिकायत दर्ज कराने की अपील करता है। इस अपील में शिकायत
पर कार्रवाई किए जाने का भरोसा शामिल होता है। यदि शिकायत और कार्रवाई के बारे में केवल एक
भ्रम बनाने की यह कवायद भर नहीं है तो एनबीएसए को अपने कामकाज में पारदर्शिता लानी चाहिए।