अनिल चमड़िया
अभिव्यक्ति की कई विधाओं में पत्रकारिता भी एक है। कहानियों, कविताओं, नाटकों आदि की प्रस्तुति का कोई एक निश्चित ढांचा नहीं है। कहानियां, कविताएं, नाटक कई तरह से प्रस्तुत किए जाते हैं। पत्रकारिता की विधा में भी प्रस्तुति के कई रूप व शैली हैं। समाचार, विश्लेषण, सूचना, टिप्पणी आदि प्रस्तुति के रूप व उन रूपों की अपनी भाषा-शैली है। जिस तरह कहानियों और कविताओं के लिए मूलभूत तत्व अनिवार्य हैं, उसी तरह पत्रकारिता के मूल में देश दुनिया के बीच निरंतर संवाद की स्थिति बनाना है।
पत्रकारिता में प्रस्तुति के विभिन्न रूपों में इंटरव्यू बेहद लोकप्रिय है। इंटरव्यू दो लोगों के बीच संवाद का एक दृश्य जरूर तैयार करता है लेकिन वास्तव में वह दो ही लोगों के बीच सवाल और जवाब नहीं होता है। इंटरव्यू में सवाल करने वाले मीडिया (जनसंचार माध्यम) के प्रतिनिधि होते हैं लेकिन वे सवाल उनके निजी नहीं होते। वे दर्शकों, पाठकों व श्रोताओं के सामाजिक-राजनीतिक सवालों के प्रतिनिधि होते हैं। बल्कि इसका भी विस्तार होता है। जिनका इंटरव्यू करते हैं उसके विषय और उससे जुड़े लोगों के वे बतौर प्रतिनिधि भी होते हैं। इंटरव्यू में राजनीतिक इंटरव्यू का महत्व अधिक होता है क्योंकि राजनीतिक घटनाक्रम सभी को एक साथ सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं।
पत्रकारिता में अभिव्यक्ति के लिए जिन रूपों को विकसित किया गया है उनमें राजनीतिज्ञों से इंटरव्यू का प्रचलन लोकतंत्र के विस्तार के साथ ही बढ़ता रहा है। यदि पत्रकारिता में अभिव्यक्ति के विभिन्न रूपों के काल और उनके प्रचलन की स्थितियों का अध्ययन करें तो उसकी पृष्ठभूमि में सामाजिक और राजनीतिक स्थितियों में तत्कालीनता का प्रभाव दिख सकता है। उदाहरणस्वरूप भारत के 1974 के छात्र आंदोलन, इंदिरा गांधी के आपातकाल के फैसले और उसके विरुद्ध आंदोलन के विस्तार के बाद पत्रकारिता में आए कुछ मूलभूत बदलाव को देखा जा सकता है।1 उस आंदोलन ने पत्रकारिता से पाठकों की अपेक्षा बढ़ा दी। पत्रकारिता में कई नये प्रकाशन शुरू हुए और वे भी अभिव्यक्ति के नए रूपों के साथ हुए और उनमें उसी अनुपात में सरोकार का भी विस्तार दिखता है। यानी एक तरह की राजनीतिक और सामाजिक स्थितियां पत्रकारिता को गहरे रूप में प्रभावित करती हैं। पत्रकारिता में अभिव्यक्त करने के नए रूप सामने आते हैं। लेकिन इसका ये अर्थ कतई नहीं लगाया जाना चाहिए कि नया रूप वृहतर सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक सरोकारों से युक्त ही हो। नये रूप, नए तरह के सरोकारों से युक्त होते हैं और वह सरोकार तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव और स्थितियों के अनुसार तय होता है।
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