न्यूज ब्रॉडकास्टर एसोसिएशन (एनबीए) ने न्यूज चैनलों के दर्शकों की शिकायत सुनने के लिए एक संस्था एनबीएसए बनाई है। यहां जिन दर्शकों की शिकायत पर टेलीविजन चैनलों की कार्रवाई से संतुष्टी नहीं होती है वैसे दर्शक एनबीएसए में अपील दायर कर सकते हैं। टेलीविजन चैनलों का संगठन होने के नाते एनबीएसए और एनबीए को भाषा का महत्व पता है। चैनलों में हिन्दी के चैनलों की संख्या सबसे ज्यादा है, लेकिन सबसे ज्यादा दर्शक क्षेत्रीय चैनलों के हैं। एनबीए की वेबसाइट के आंकड़ों और विश्लेषण से इस बात की पुष्टि होती है। एनबीएसए ने उन दर्शकों की ही शिकायत सुनने का प्रावधान किया है जो कि उसके समक्ष दो भाषाओं हिन्दी और अंग्रेजी में शिकायत करने में सक्षम हैं। लेकिन बाकी सब काम वह अंग्रेजी में ही करता है। उसकी वार्षिक रिपोर्ट केवल अंग्रेजी में मिलती है। एनबीए और एनबीएसए के कामकाज की भाषा अंग्रेजी ही है। शिकायतों और उस पर आधारित फैसले व आदेश भी अंग्रेजी में ही मिलते है।
एनबीएसए के समक्ष शिकायत संबंधी जानकारियां हिन्दी में उपलब्ध नहीं हैं। एनबीएसए देश का सुप्रीम कोर्ट नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की भाषा केवल और केवल अंग्रेजी है। लेकिन एनबीएसए के समक्ष करोड़ों की तादाद में वे दर्शक है जो कि अंग्रेजी भाषा नहीं जानते और न ही समझते हैं। एनबीएसए में वकीलों के साथ पेश होने की छूट हैं। सुप्रीम कोर्ट की तरह कामकाज की भाषा अंग्रेजी होने और वकीलों के जरिये एनबीएसए में शामिल होने की व्यवस्था का मतलब ये होता है कि एनबीएसए में कानूनी नुक्ता चीनी होती है। सीधा साधा दर्शक ये सोच भी नहीं सकता है कि टेलीविजन के चैनलों की किसी सामग्री से उसका किसी भी स्तर पर अहित हुआ हो व सामाजिक स्तर पर वह सामग्री को नुकसानदेह समझता हो तो उसकी शिकायत व अपील के लिए वह उपयुक्त आर्थिक-नागरिक है। देश में नागरिकों के बीच विभेदीकरण का यह एक उदाहरण है।
एक नागरिक आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर ताकवर महसूस करता है। दूसरे तरह का नागरिक केवल आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर अपने को सुरक्षित महसूस कर सकता है। लेकिन एक नागरिक को केवल संविधान में नागरिकता के न्यूनतम प्रावधानों को पूरा करने के कारण ही महज नागरिक का दर्जा मिलता है। वह आर्थिक व सामाजिक स्तर पर इस रूप में सक्षम नहीं होता है कि वह संविधान में दूसरे नागरिकों की तरह अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर सकें। एनबीएसए के प्रावधान दर्शकों में इसी तरह का विभेदीकरण करते हैं। इसीलिए हम देख सकते हैं कि जिस बड़े स्तर पर लोगों की सभाओं, सम्मेलनों, प्रदर्शनों में मीडिया की प्रस्तुति व सामग्री को लेकर शिकायतें, आलोचना व विरोध सुनने को मिलता है उसके मुकाबले एनबीएसए के समक्ष शिकायतों व अपीलों की संख्या बेहद कम हैं। एनबीए की 2016-17 की 10 वीं सलाना रिपोर्ट के मुताबिक इस वर्ष के दौरान 232 शिकायतों पर सुनवाई की। यदि शिकायतकर्ताओं के समाजशास्त्रीय व आर्थिक पृष्ठभूमि का अध्ययन किया जाए तो संभवत: ये तथ्य और भी स्पष्ट तौर पर सामने आ सकता है कि दर्शकों में किस वर्ग तक ही टेलीविजनों के चैनलों की सामग्री व प्रस्तुति के खिलाफ शिकायतें व अपील करने का विशेषाधिकार प्राप्त हैं।
भाषा को महज एक माध्यम के रुप में नहीं देखा जाता है। जब लोगों की आम भाषा से इत्तर और वह भी आतंकित करने वाली भाषा का इस्तेमाल हो तो उसके आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक निहितार्थ होते हैं। भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में यह देखा गया है कि सार्वजनिक निगरानी तंत्र में बुनियादी बदलाव और अधिकतर लोगों की समझ से परे भाषा के इस्तेमाल को पूंजीवादी हितों को पूरा करने का माध्यम बनाया गया है। सूचना प्रौद्योगिकी और संप्रेषण से जुड़ी लगभग सभी संस्थाएं खासतौर से निजी क्षेत्र की संस्थाओं की भाषा अंग्रेजी है। कमाई करने की भाषा हिन्दी है और कमाई के लिए जो अपराध किया जाता है उसे छिपाने के लिए अंग्रेजी होती है।
एनबीए हिन्दी में काम क्यों नहीं करता
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